पतंजलि आयुर्वेद को लगाई गई कड़ी फटकार पर जाने क्या है पूरा मामला: तो खबर के अनुसार 27 फरवरी मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने औषधि इलाज के संबंध में भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने वाले पतंजलि आयुर्वेद को बहुत फटकार लगाई।
जबकि पतंजलि आयुर्वेद के द्वारा नवंबर में पिछले साल कोर्ट को आश्वासन दिया गया था कि उनके द्वारा इस तरह का भ्रामक विज्ञापन वाला कोई बयान नहीं दिया जाएगा। तो इस प्रकार कंपनी ने वचनपत्र का उल्लंघन किया है न्यायालय ने पतंजलि आयुर्वेद को और आचार्य बालकृष्ण पतंजलि के प्रबंध निर्देशक को नोटिस भी जारी किया है कि यह बताएं कि उनके खिलाफ कोई भी कार्यवाही क्यों नहीं की जानी चाहिए।
इसी बीच न्यायालय ने पतंजलि आयुर्वेद को उनके उत्पादों का विज्ञापन या ब्रांडिंग करने से भी रोक दिया जिसका उद्देश्य ड्रग्स एवं मैजिक रेमेडीज आपत्तिजनक विज्ञापन अधिनियम 1954 में निर्दिष्ट बीमारियों विकारों को संबोधित करना है। और न्यायालय ने यह भी आदेश किया है कि वह चिकित्सा की किसी भी प्रणाली के प्रतिकूल कोई भी बयान नहीं देंगे या विज्ञापन नहीं करेंगे। इस मामले पर दो सप्ताह बाद कार्रवाई की जाएगी। इस मामले की सुनवाई जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा की जा रही थी।
जिसमें बताया गया है कि टीकाकरण अभियान और आधुनिक दावों के खिलाफ अपमानजनक अभियान और नकारात्मक विज्ञापनों को नियंत्रित करने की मांग की गई है।
इसके अलावा कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी पूछा कि पतंजलि के विज्ञानकों के संबंध में ड्रग्स एवं मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम 1954 के तहत उनकी ओर से क्या कार्यवाही की गई है।
संघ के कानून अधिकारी ने कहा कि भ्रामक विज्ञापनों को स्वीकार नहीं किया जा सकता है और यह भी कहा कि यह संबंधित राज्यों के लिए नहीं है। अधिनियम के तहत कार्यवाही करने के लिए संघ को अपने द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में बताते हुए एक हलकनामा दायर करने के लिए कहा गया है।
जब इस मामले की सुनवाई सुबह की सत्र में हुई तो न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने एक और विज्ञापन के लिए पतंजलि आयुर्वेद को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि आज मैं वास्तव में सख्त आदेश पारित करने जा रहा हूं और अब आप इस आदेश का उल्लंघन नहीं कर सकते हैं।
और न्यायालय ने यह भी कहा की कोर्ट के आदेश के बाद भी आप में इतना साहस है कि आप ऐसे विज्ञापनों के साथ आते हैं और यह भी कहा कि स्थाई राहत से आप क्या समझते हैं क्या यह कोई ऐसा इलाज है, जो हमें स्थाई राहत दे सकता है। और कहा कि हम एक बहुत ही सख्त आदेश पारित करने जा रहे हैं। बाद में मामला रफा दफा हो गया।
बाद में जब दोपहर 2:00 बजे यह मामला दोबारा उठाया गया तो इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील स पटवारी ने कहा कि 21 नवंबर 2020 को सुप्रीम कोर्ट एक आदेश पारित करने के अगले दिन, बाबा रामदेव और पतंजलि के आचार्य बालकृष्ण ने फोन किया। और फिर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए फिर से भ्रामक दावे किए। उन्होंने कहा कि विज्ञापन प्रकाशित किए गए थे जिसमें यह भी दावा किया गया था कि पतंजलि आयुर्वेद के पास मधुमेह, अस्थमा, गठिया, रक्तचाप, ग्लूकोमा आदि का स्थाई इलाज है।
परंतु पटवालिया ने उल्लेख किया कि इनमें से कहीं बीमारियां विशेष रूप से ड्रग्स एवं और मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम की अनुसूची में सूचीबद्ध है।
फिर बेंच ने पतंजलि आयुर्वेद के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता विपिन सांघी से पूछा कि आप स्थाई राहत का दावा कैसे कर सकते हैं। और इसके अलावा बेंच ने एलोपैथी जैसी दवाओं की अन्य प्रणालियों के संबंध में भी पतंजलि आयुर्वेद द्वारा दिए गए बयानों के बारे में भी वकील से सवाल किया और बताया कि पिछले आदेश में टिप्पणियां या आप ऐसे विज्ञापन नहीं करेंगे इस पर रोक लगा दी गई थी।
जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन हुआ है और बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को नोटिस जारी किया जाना चाहिए जिनकी तस्वीर विज्ञापनों में दिखाई गई है।
उसके बाद वकील सांगी ने कहा कि जहां तक बाबा रामदेव का सवाल है तो वह तो एक संन्यासी है।
फिर अमानुल्लाह ने कहा हमें से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह कौन है.. यह प्रथम का उल्लंघन है। और पटवालिया ने संगी के बयान को अपमानजनक बताया। फिर न्यायमूर्ति कोहली ने कहा कि उन्हें आदेश के बारे में पता था और प्रथम के बारे में भी की वे इसका उल्लंघन कर रहे हैं।
बेंच विज्ञापनों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव कर रही थी हालांकि सांघी ने कहा कि कंपनी टूटपेस्ट जैसे उत्पाद भी बना रही है और पूर्ण प्रतिबंध से उनके वाणिज्य परिचालन पर असर पड़ेगा इसके बाद न्यायालय ने कहा कि विज्ञापन प्रतिबंध,अधिनियम के तहत निर्दिष्ट बीमारियों से संबंधित उत्पादों पर लागू होगा।
इसके अलावा एक संक्षिप्त पृष्ठभूमि प्रदान करने के लिए IMA ने केंद्र को निर्देश देने के लिए कहा कि भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI) और (CCPA) भारत के केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण को आयुष प्रणाली को बढ़ावा देने वाले ऐसे विज्ञापनों और अभियानों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश देना चाहिए।
यदि बात करें पहले की तो अगस्त 2022 में CJI रमन के द्वारा नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड( बाबा रामदेव द्वारा सह स्थापित कंपनी) सहित उपरोक्त अधिकारियों को भी नोटिस जारी किया था।
21 नवंबर 2023 को कोर्ट ने आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों के खिलाफ भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए पतंजलि आयुर्वेद को फटकार लगाई थी और न्यायालय द्वारा ऐसे विज्ञापन जारी करने पर एक करोड़ का जुर्माना लगाने के साथ-साथ सख्त चेतावनी भी दी गई थी।
और कहा था कि पतंजलि आयुर्वेद को ऐसे सभी झूठे और भ्रामक विज्ञापनों को तुरंत ही बंद करना होगा। और यदि फिर भी आप इसका उल्लंघन करते हैं तो न्यायालय बहुत गंभीरता से पेश आएगी और मुख्य रूप से कहा था कि प्रत्येक उत्पादन पर एक करोड रुपए जिसके बारे में आप झूठा दावा की कर रहे हैं कि यह एक विशेष बीमारी को ठीक कर सकती है।
इसके साथ पतंजलि आयुर्वेद के वकील ने आश्वासन दिया था कि वह भविष्य में ऐसा कोई भी विज्ञापन प्रकाशित नहीं करेंगे और यह भी सुनिश्चित किया था कि प्रेस में आकस्मिक बयान भी नहीं देंगे फिर कोर्ट ने इस अंडरटेकिंग को अपने आदेश में दर्ज कर लिया।